Saturday 4 May 2019

"राजधानी एक्सप्रेस"

चलती है दौड़ती है
पटरी को तोड़ती है
सबको पीछे छोड़ती
बस आगे निकलती जाती
ऐसी है राजधानी ट्रेन
सभी ट्रेनों की गौरव है!
पर एक दिन इंजन रहित ट्रेन
टी एट्टीन राजधानी को भी
पीछे छोड़ ही देगी जो सभी
सुविधाओं से लैश है जैसे आधुनिक हथियार!
देश की राजधानी दिल्ली
सभी राज्यों की जनता का
प्रतिनिधित्व करती है
देश की आन- बान है
भारतवासी आशाई नज़रों से
विधि व योजनाएं का
सदा ही इंतजार रहता है!
महानगर की दुनिया
रंगीन सपना इस के पीछे भागते आते लोग
गाँव से शहर पलायन करते
अपनों और अपना घर छोड़
अपनी भाषा और बोली छोड़
संस्कृति और संस्कार छोड़
पाश्चात के सियारी रंगो में खुद को रंखकर
मोर से रातों को नंगा नाचते लोग
शबाब औरतों का पालते लोग!
बड़ी बड़ी बिल्डिंग
ऊँची दिवारे चौड़ी मीनारे
ललहलाते बाग
दमकती लाइटें की बल्वें
सरपट दैड़ती सड़कों पर
आदमियों पर गाड़ियाँ
नियम पे चलते यातायात
मँहगी शिक्षा और स्वास्थ!
कचरे के ढोर में लिपटा
कुड़ा बिनता नन्हा बच्चपन
झुग्गी झोपड़ी सनता जीवन
स्वच्छ पानी बिन जीता
स्वच्छ वायु को तरस्ता
शिक्षा से वंचित रहता
जानवरों सा मानव रहता!
राजधानी ट्रेन भी  बस नाम की रह गई है
मँहगा सफर है फिर भी धटिया भोजन
बनी कुव्यवास्था है दिखती
राजधानी नाम कि बस
सभी को न समाँ पाती
देती सबको सपने उनको पर
आधे अधुरे छोड़ जाती !
जरूरी है राजधानी जैसी सुविधाएं
सभी राज्यों की राजधानियों में मिले
और गाँव से पलायनवाद रूके!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

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