Thursday 16 May 2019

"मैं दरख्त का वो पत्ता हूँ"

मैं दरख़्त का पत्ता हूँ
जो ना पेड़ से टूटता हूँ
ना पेड़ पर सही रहता हूँ
ना मैं हरा होता हूँ
ना सुख कर पीला पड़ता हूँ
बस इसी उधेरबुन में रहता हूँ
मैं वजूद में हूँ भी या नहीं
पेड़ के बिना वैसे ही मैं तुम बिन!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना

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