मौत तो आनी है
एक बार खुलके जी तो लूँ
बचपन खेलने में बीता
जवानी पढ़ने में
आधा उम्र में नौकरी मिली
बची उम्र कमा कर
पति, बच्चों व परिवार को खिलाने में
बुढ़ापा पश्ताने में!
मैंने अपनी जिन्दगी जिया कब
मैंने अपनी मर्जी किया कब
जब किसी से प्यार किया तो
प्यार में धोखा खाया
पढ़ाई की फिर भी
बार बार असफल रही
किस्मत को कोसता रही!
ये भी कोई जिन्दगी थी
जो कुछ पाने में अपना सब खो दिया
सोचता रही पर कुछ भी न कर सकी!
जीना चाहती थी
उड़ान भरना चाहता थी
जेब में रूपैये नहीं थे
प्यार करना चाहती थी
पर एक प्रेमी पास नहीं था
तो कभी वक्त पास नहीं था
बहुत पढ़ना है अभी!
एक बार खुलके जी तो लूं
जी भर खा लूं अपने मन की
जी भर पी लूँ जो चाहूं वो
जी भर कर लूं चाहे उटपटांग ही सही
यही तो जिन्दगी है
फिर मौत तो आनी ही है एक बार खुलके जी तो लूं।
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना कटिहार,बिहार
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