Monday 6 May 2019

"शब्द तो शब्द है"

शब्द तो शब्द है
अनायाश ही आ जाते है
किसी पुरानी याद से
आकर लिपट जाते है!
जैसे कोई प्रेमी हो
शादी के बाद भी आ जाता
अपना हक़ जताने
तुम मेरी हो आज भी
भले तन तुम्हारा
किसी और का हो!
हाड़ माँस के शरीर में
शिरा और धमनी होकर जाता रक्त
दिल से ही जाता है
वो दिल भले तुम्हारा हो
पर मैं उसमें रहता हूँ
तुम्हारे साँसे बन चलता हूँ!
शब्द भी मेरी साँसो है
जब तक ये देह रहेगा
शब्द शब्द से गुथ कर
कविता बनते रहेंगे और
ऐसे ही अनायाश आते रहेंगे!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

No comments:

Post a Comment