Friday 10 May 2019

"काश् मैं फूल खाती"

इन्सान सब कुछ खाता
जीव जन्तु पशु पक्षी पेड़ पौधे
कीड़े-मकोड़े फिर फूल क्यों नहीं खाता
सोचा क्या किस्मत है फूलों की
ईश्वर के चरणों में रहने की
कितने सौभाग्यशाली है
ये कितने कोमल है
थोड़ा जोर से मसल दो तो
रौनक खत्म हो जाती पौधो की
टहनी से तोड़ दो
जान खत्म हो जाती है!
कुछ दिन हरे हरे रहकर
फिर सुख जाते है
हमे खुशबू देते खुशी देते
हम अपने शौक के लिए
इनका इस्तेमाल करते
फिर जब चाहे इनको तोड़ लेते
टहनियों से उखाड़ देते
जड़ से काट देते पेड़ को!
हमसे क्या चाहते है
थोड़ा जल और समुचित रखरखाव
क्या हम नहीं दे सकते
ये भी जीव है कृपया इनको जीने दो
समय पर खिलने दो व मुरझाने दो
जैसे हम मानव की जन्म
और मृत्यु निश्चित है!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
कटिहार,बिहार

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