Thursday 16 May 2019

"कालाधन"

हाँ,काला धन हूँ
मुझमें से काला निकाल दो तो
मैं केवल"धन"हूँ
फिर भी लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं
काला,काला,काला कह के
उसमें मेरा क्या दोष है!
मुझे तो काला कुछ धन लोलप्सु लोगों ने बनाया है
मैं तो "धन"के रूप में "लक्ष्मी"का रूप हूँ
लोगों के घरों में
लोगों के दिलों में
कभी-कभी दिमाग में छा जाता हूँ!
फिर क्या मैं लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर देता हूँ
या यूँ कह लो घरती के बुद्धजीवि को
अपने मुठ्ठी में भर लेता हूँ
फिर अट्टाहस मारता हूँ हा हा हा
देखो मैं शक्तिशाली हूँ मानव नहीं...
जिसके पास जाता हूँ
वो धनाढ्य कहलाता है
जिसके पास से आता हूँ
वो कंगाल कहलाता है!
समाज,बाजार,दुनिया सब मुझ से चलता है
मैं नहीं तो जग अंधेरा है दिन के उजाले में!
मैं समाजिक मान,सम्मान,प्रतिष्ठा,रूतबा हूँ
चलती है मेरी हर जगह जहाँ में जाता हूँ
और मुझे धारण करने वाला हस्ती बन जाता है!               इसलिए मैं केवल"धन" हूँ
जैसा लोगो के रक्त में फर्क करना मुश्किल है
वैसे मुझ में करना!
किसी भूखे नंगे फकीर से
पूछो तो बतलाएगा पैसे का मोल
मेरा(कालेधन) प्रयोग दान,पुण्य,सेवा,भलाई में कर
मुझे काला से सफेद बनाया जा सकता है!
जो मुझे कालाधन कह मेरा
निरादर,अपमान और तिरस्कार करते है
इसलिए मैं केवल "धन"हूँ कालाधन नहीं!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना

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