मैं पक्षी बनना चाहती हूँ
ऊपर गगन को छूना चाहती हूँ
उड़ते बादलों को चूमना चाहता हूँ
ऊँचे ऊँचे पेड़ो पर बैठना चाहती हूँ
नीचे जमीन पर दाना चुगना चाहती हूँ
मैं पक्षी बनना चाहती हूँ!
उन्मूक्त बन दूर तलक उड़ना चाहती हूँ
सरहदों की सीमा लाँघना चाहती हूँ
मजहब,जाति पाति व समाज की
हर दिवार को तोड़ना चाहती हूँ
मैं पक्षी बनना चाहती हूँ!
मैं पवन की तरह बहना चाहती हूँ
रेत की तरह उड़ना चाहती हूँ
नदी की तरह तँट तोड़ना चाहती हूँ
झील बन अथाह जल समेटना चाहती हूँ
मिट्टी की तरह नरम बनना चाहती हूँ
मैं पक्षी बनना चाहती हूँ!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
कटिहार,बिहार
मौलिक रचना
Saturday, 4 May 2019
"मैं पक्षी बनना चाहती हूँ"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment