हाँ, मैं हूँ मनरेगा का मजदूर
गरीबी है कोसों मझसे दूर
सरकारी नौकरों जैसा तन्खा तो नहीं
पर बेरोगारी भत्ता पाता हूँ
मेरा जन्म गाँधीजी जंयती से हुआ
नरेगा से मेरा नाम परिवर्तन
मनरेगा शहरों जैसा हो गया है!
चौदह वर्ष का बालक हूँ
अभी वामदल के समर्थन से
संप्रग सरकार द्वारा लाया गया हूँ
कल्याणकारी योजनाओं की देन हूँ
मेरा वहन केन्द्र और राज्य सरकारों
द्वारा किया जाता है!
तीस दिनों की न्यूतम मजदूरी
प्रति परिवार सौ दिनों की गारंटी
ग्रामीण परिवार के व्यस्क सदस्य को
नाम व पत्ते के जांच के बाद
पंचायत द्वारा दिया जाता हूँ
मुझे देने के लिए पुरूष स्त्री में
कागजी भेद नहीं किया जाता है
पर कभी न मिलता समान वेतन!
ये अन्य गरीबी योजनाओं की तरह
पूरी तरह तो सफल नहीं परन्तु
आंशिक रूप फे सफल है
राजस्थान बना इसका अपवाद है
मध्यप्रदेश में मानकीकृत हो गई है
स्थानीय परामर्श न के बराबर है
काम में लगे वास्तविक संख्या से अधिक
झूठे जाॅब कार्ड का दावा किया जाता
जिससे ज्यादा फंड प्राप्त हो सके
स्थानीय अधिकारियों द्वारा राशि गबनकर
जाॅब कार्ड बनाने के नाम पर
रिश्वत भी मजदूरों से ली जाती!
मनरेगा के नाम पर ये कैसी
गरीबी मिटाई जा रही है
जहाँ गाँव में मजदूरों में कई वर्ग हो गए है
ये कैसा समाजवाद है जहाँ
हर पल खोखला होता
समाजवाद का यह विचार है!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Saturday, 4 May 2019
"मनरेगा का मजदूर"
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