Friday 10 May 2019

"आओ साझा संस्कृति साझा समाज बनायें"

कैसी संस्कृति कैसा समाज
जिसकी हम दूहाई देते
जो चिरकाल से निरन्तर
परिवर्तित होती चली आई!
फिर अब क्यों नहीं?
बंद दरवाजे नये विचार आने के लिए
खोल दो बंद खिड़कियाँ
शुद्ध हवा खाने के लिए
खोल दो ताज़गी में चित प्रसत्र होगा
बांसी की बदबू जाती रहेगी!
इन कुसंस्कारों की बेडियों को
तोड़ मढ़ोड़ कर रख दो
अपने नियम बनाओ
कोई भी पूर्ण नहीं ना मानव ना संस्कृति
पश्चिम की स्वच्छंदता व
पूर्व के संस्कारों का मेल कर
साझा संस्कृति बनाओ साझा समाज बनाओ
मानव नौतिकता के बोझ से
जीवंत मृत ना हो जाए
अतिभोगवाद से पलायन कर
इहलोक को चला जाए
मध्यम मार्ग को अपनाकर
आनंदवाद जीवन उदेश्य पाओ!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

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