Thursday 20 December 2018

"इमली"

इमली का बूटा बैरी का पेड
इमली खट्टी मीठी बैर
गाना हम नहीं गाते थे
हमें तो इमली बहुत भाते थी
हाथ में सरकारी स्कूल का बस्ता
क्यों अंग्रेजी पढने वालों बच्चों के
बसते पीठ पर टंगे रहते जैसे गधे के
हमारे बसते में पढने का
बिछौना किताबें और काॅपी के
कभी ऊपर तो कभी नीचे रहता!
मस्त दोनों भाई बहन जैसे
कोई लंगोटिया दोस्त हो
घर से स्कूल को जाते
रास्ते में इमली के पेड से टकराते
नीचे बिखरे रहते कुछ खट्टे मीठे मोती
पर इतने से क्या होने वाला है
पूरी क्लास की मित्र मंडली के लिए
टिफिन में मुँह मीठा करने ले जाना था!
पेड़ को खूब हिलाता ढुलाते
जब पेड़ हम पर धीरे से हँसता
फिर हम न हिम्मत हारने वाले बच्चों की तरह
पत्थर पे पत्थर मारते
तरसते बारिश की बूंदें के लिए
किसान आसमान की ओर
टकटकी लगाएं देखता है वैसे
हम देखते थोड़ी देर के लिए
इंद्र देवता खुश होके कुछ वर्षों की
बूंदें छीट देते हम खुश होते
इन्हें बसते में रखकर
क्या दिन थे वो आनंद के
न पढने न धन कमाने की चिंता थी!
टिफिन पर सबके वासते खाना
एक दुसरे को खिलाते
दुकान से एक मुठ्ठी नमक मांग लाते
तब पैसे नहीं लगाते थे
स्कूल के बच्चे समझ दुकानदार
खुशी से हमें दे देते थे पर अब तो
ज़हर मांगने पर नहीं मिलेगी
नमक क्या मिलेगा वो भी
दस रूपये किलो है हा हा हा
बीत गए वो जमाने के दिन
अब तो कोई किसी के साथ
न खाता पीता न ही बाँटता है
लडाई करने पर दी हुई चीजों को
दोस्तों से वापस मांगते थे अब तो
कोई उधार में भी वो लडाई नहीँ दे सकता
न ही बीते प्यारे दिनों की वापसी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ, बिहार
मौलिक रचना
20/12/18

No comments:

Post a Comment