Thursday 27 December 2018

"हाँ,आरक्षित हूँ मैं"

आरक्षित हूँ मैं
सुरक्षित हूँ मैं बस की
कुछ सीट पर
रेल व बैंक के काउंटरों पर
सरकारी कुछ सेवाओ में भी
महिला हूँ मैं!
आरक्षित हूँ मैं
मंडल आयोग की कृपा से
महामंडित हूँ मैं
पिछड़ा वर्ग हूँ मैं!
आरक्षित हूँ मैं
सदियों से शोषित हूँ
सबसे शासित हूँ
अनुसूचित हूँ मैं!
आरक्षित हूँ मैं
वन में वासित हूँ
असभ्य,अनपढ़ हूँ
आदिवासी हूँ मैं!
आरक्षित हूँ मैं
अल्पसंख्यक हूँ
इस्लाम कौम हूँ
जातियों में अविभाजित हूँ
मुस्लिम हूँ मैं!
आरक्षित हूँ मैं
अल्पमत में हूँ
संपन्न धन धान्य से हूँ
दक्षिण का ब्राह्मण हूँ मैं!
आरक्षित हूँ मैं
ना ही स्त्री हूँ ना ही पुरूष
जो मैं चाहूँ बने रह सकता
ओबीसी की सुविधा से लेस हूँ
किन्नर हूँ मैं!
अनारक्षित हूँ मैं
सदा ठाठ बाट में रहा
जाट हूँ मैं
ओबीसी वर्ग से हूँ
फिर भी आरक्षित की सूची में नहीं हूँ!
अनारक्षित हूँ मैं
बाहूबल में सबसे श्रेष्ठ हूँ
समाज में प्रतिष्ठित हूँ
राजपूत हूँ मैं
मूछों में ही मेरी शान है
आरक्षण से मेरा मान घटा है!
अनारक्षित हूँ मैं
चित्रगुप्त की संतान हूँ
कागज कलम मेरे हथियार है
कई भू खण्डों का स्वामी हूँ
कायस्थ हूँ मैं
आरक्षण का दुश्मन हूँ मैं!
अनारक्षित हूँ
मैं शरीर के सबसे ऊपर
समाज में ऊँचे तल पर
भगवान से थोड़ा नीचे हूँ
महाज्ञानियो में से एक हूँ
ब्राह्मण हूँ मैं
आरक्षण का विरोधी हूँ!
हमें भी आरक्षण दे दो
चाहे तो भिक्षाटन दें दो
या आरक्षण का भेदभाव मिटाओ
सत्तर साल मिल है इनको
सदी लेकर ही मानेंगे?
भले हमारे पूर्वजों ने शासित बना
इनके साथ जानवरों से भी
बत्तर सलूक किया हो
लेकिन लोकतंत्र राज्य में
सब बराबर है सभी एक
ईश्वर की संतान मानव है
आरक्षण हटाओ प्रतिस्पर्धा बढ़ाओ!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णयाँ,बिहार
27/12/18

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