Friday 28 December 2018

"कुम्हार की माटी"

कुम्हार माटी से
प्रकार प्रकार की
मूरत बनाता पर
तुमने तो इन्सान को
मूरती बना दिया!
कुम्हार साँचे में ढालकर
मनचाहा रूप देता पर
तुमने तो मुझे अपने साँचे में
ढाल दिया मेरी सुरत
संवारते संवारते अपनी
सुरत दे डाली ताकि जब भी मैं
आइना देखूँ सिर्फ तुम्हें देखूँ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
29/12/18

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