Thursday 20 December 2018

"नीम"

नीम कड़वा बाहर को रहता
मिठ्ठा आँगन में बसता
बेला चमेली खुशबू देती
घर को चंदन सा महकती!
कठ़वा टुकुर टुकुर अंदर
मुँह सबका देखता कोई तो बढ़ाई करे
उसके उद्भूत गुणों की!
पर दूध में गिरी मक्खी समझ
कोई हाल चाल नहीं पूछता
न खाने पीने को कुछ देता
बूढ़ा,बुढ़िया जैसा ही
वो घर का कुड़ा हो जाता!
जो पेड़ फल देता
पुजनीय देवता बन जाता
मेरा कड़वा स्वाद से
मैं दानव बन जाता!
फिर भी बुरी बलाओं को
सदा बाहर ही रखता!
मिठ्ठा बनके जहर सबके
जीवन को ग्रहण लगाता!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ, बिहार
मौलिक रचना
20/12/18

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