बनारस में बुनती
देश विदेशों तक बिकती
जिसको पहना चाहती
भारत की हर नारी
वो है बनारसी साड़ी!
इसके आगे फिकी
सारी की सारी साड़ी
चमकीली नीली- पीली,हरि,
गुलाबी -लाल, जामुनी- आसमानी,
केसरिया- कथ्थई, इंद्रधनुष के रंगो सी!
दुल्हन जैसे नथ को बार बार है देखती
वैसे बनारसी साड़ी को
पहनकर बहुत जँचती
सुन्दर रेशमी सोने की ज़री की है
कारीगिरी परम्मरागत मोटिफ बूटी,
बुटा,कोनिया,बेल,
जाल और जंगला झालर के क्या कहने!
मुगलों की है देन पटका,शेरवानी,
साफा,पगड़ी,दुपट्टे, बेड -शीट,
मसन्द में भी ये है निखरी!
अब तो सूट के कपड़े, पर्दा,
कुशन कवर में भर रही कल्लकारी!
ज़रदोज़ी की है बारीकी कर रही
मिलकर औरतें भरपूर मिला है रोजगार
सस्ती मजूरी के चक्कर में
बढ़ता जा रहा बाल शोषण
बुनकरों से सस्ते दामों में खरीदकर
मंहगे दामों पर हो रहा
बनारसी का व्यापार
फिर भी ना जाता इसपर
भारत सरकार का ध्यान!
इससे पहले की ये कलात्मक कला
दम तोड़ दें बुनकरों मिले
इसका उचित दाम!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
27/12/18
Thursday, 27 December 2018
"ये है बनारसी साड़ी"
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