दाई तो है वो मेरी
लगती है वो माँ जैसी
रोज मुझे नहलाती है
रोज मुझे खिलाती है
मेरे बालों को सवारती है
मेरा कपड़े साफ करती है
मेरी पोटी साफ करती है
मेरी नैपकीन बदलती है
जब मैं छोटा बच्चा था
अब मैं बड़ा हो गया हूँ
तीन साल का हो गया हूँ!
अब भी तो वो मेरा
सारा का काम करती है
स्कूल ड्रेस इस्त्री करती
मेरा लंच भी बनाती है
मेरा बैग में पैक करती है
मुझे स्कूल छोड़ने और
लिवाने रोज जाती है!
मम्मी जाॅब पर जाती है
बिजी हमेशा रहती है
शाम को वापस आती है
कभी वाट्सअप तो कभी
फेसबुक पर चिपकी रहती है
पापा ऑफिस की फाइलों में!
मेरा हाॅम वर्क तो
टीचर जी करवाती है पर दाई माँ
इसका भी घ्यान रखती है
हरपल मेरी निगरानी करती है
मैं कब सोया कब जागा
मुझे क्या पसंद क्या ना पसंद
वही बनाकर खिलाती है
दाई माँ बहुत ही प्यारी है!
जब भी वो नहीं आती है
उसकी कमी बहुत खलती है
मैं अकेला हो जाता है
खुद से बातें करता हूँ
कभी खिलौने तो कभी
काटून से काम चलाता हूँ
मुझे तो उसमें ही माँ दिखती है
और मेरी माँ में दाई माँ!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
20/12/18
Thursday, 20 December 2018
"दाई माँ"
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