गुपचुप गुपचुप खाऊँगी
चुप चुप चुप पाऊँगी
गौल गोल गाल फूला
सबको दिखलाऊँगी
ऊपर से पुदिने का
सोमरस चढ़ाऊँगी
ईमली का खट्टा मिठ्ठा
स्वाद का मजा लूँगी!
पानी पुरी का नाम सुनते ही
मुहँ में पानी आ जाता
सुबह हो या शाम हो
ओठों पर कभी ना नाम हो
जब ठोले वाला पानी पुरी बेचने आता
तो दूर से ही सब बच्चों को पता चल जाता
पानीपुरी वाला आ रहा है
बताऊँ बताऊँ कैसे
उसके ठेले की घंटी से!
फुचका आटा और सुजी से बनता
छोटी छोटी करारी करारी पुरियाँ
हर उम्र के लोगों को भाँती पर
बच्चों और महिला की मनपसंद
व्यंजन बन जाती!
पहले दस रूपैये में
दस खाने को मिलता था
मँहगाई की जो मार पड़ी
दस में केवल चार मिलता है
पॉकिट मनी भी पापा मम्मी से
ज्यादा नहीं मिलता है
बस एक टिफिन का डब्बा मिलता है
जो खाकर मैं बोर हो चुका
मैं तो बस गुपचुप खाऊँगा
ओ गुपचुप वाले थोड़ा रेट
सही सही लगा दो भाई
जेएसटी तो नहीं लगा दी
मोदी चाचा की सरकार ने!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
20/12/18
Thursday 20 December 2018
"गुपचुप"
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