शहीद हो गई माँ की गोदी
दुश्मनों से लड़ते -लड़ते सीमा पर
जिस लाल को नौ महीने कोख में
पाला था
आज उसी लाल को
खूऩ में सना तिरंगे में लिपटा देख
माँ की आसूँअन धारा ना रूकती
कभी माँ के आँचल में छिप जाया करता था
लला
दुसरों के साथ शैतानियाँ करके
आज वही आंचल ना बचा सका
दुश्मनों की गोलियों से !
गर्व से माथा उँचा कर
माँ सम्मान पा रही
पर दर्द से
माँ का कलेजा फटा जा रहा
जैसी धरती माँ का फटता अपने
लाल को
दु:ख में देखकर
आज उसकी शहादत पर
एक और माँ फिर से शपथ ले रही
भेजूँगी अपने लाल को देश की सेवा करने
वतन पे मर मिटने को !
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ, बिहार
15/3/18
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