अमीर दुल्हों के सेहरे
वैवाहिक जोड़ के गलमाला बन
शान से शादी के मंडपो में सजता हूँ
ओर्किड नाम है मेरा
मंहगा फूल हूँ मैं!
मुझे खरीदनी हर
किसी के बस की बात नहीं
आकर्षक धन है मेरा
गुलाब की खुशबू नहीं मुझ में
पर गुलाब से मँहगा बिकता हूँ
मुझे खरीदने वाला दस बार
अपनी जेब टटोलता है
असमंजस में सदा रहता है
खरीदे या ना खरीदे!
एक रात के नशा जैसा हूँ
सुबह होश में कर देता हूँ
कब तक लोंगों की जेबें
खाली कर देता हूँ
सारे फूल जलते है मुझसे
बिना बहुत अच्छी खुशबू के
कैसे मंहगा बिकताहूँ! कुमारीअर्चना पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
17/12/18
Tuesday, 6 February 2018
"ओर्किड हूँ मैं"
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