मेरे प्यारे गुलमोहर
कहाँ चले गए हो
मुझ में सावन भर कर कहीं ओर
भादों बनकर बरखा करने को
मुझे प्यासा छोड़ गये!
वो जो मुझे तड़पाता था
इंतजार करवाता था
मुझे तरसाता था
अपनी बाँहों में भर कर
प्यार का फूल बरसाता था!
वो फूल नहीं था
जो आँधीयों के आने पे
डाली से टूट मुरझा जायें!
वो तो मेरे मृत शरीर में
जान फूंक गया प्यार की लौ जला के
मुझे अंदर ही अंदर जलने को!
मेरे प्यारे गुलमोहर
मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ
इसलिए गुलमोहर का एक पेड़
आँगन में लगा रखा है!
जब भी मस्तानी हवा चलती है
फूल जड़ कर मुझे पर गिरते
उसकी मिट्ठी मिट्ठी खुशबू
तुम्हारे होने का अहसास कराती है
जब मेरे साँसो में जाती !
कुमारी अर्चनी
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
१०/४/१८
Tuesday, 6 February 2018
"मेरे गुलमोहर"
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