Tuesday 6 February 2018

"मैं निर्जीव हूँ"

मैं निर्जीव हूँ
मेरा भी सम्मान करो
मुझमें तुम्हारी जैसी जान नहीं
बोल नहीं पाता हँस नहीं पाता
रो नहीं पाता
पर मेरी दायनीय दशा
हाल बयाँ करती है
मुझे भी इन्सानों जैसा
साफ सुथरा व समय समय पर
मरम्मत करते रहे!
मैं खुद पर हुए प्रहार को
रोक नहीं पाता ना ही
अपनी जीवन रक्षा हेतु
आवाज़ उठाते नहीं पता
चाहे मारो या काट दो
पेड़ पौधे व पशु पक्षी जीव जन्तु भी
मेरे जैसे है वो भी बोल नहीं पाते
वो भी किसी को जीवन देते
बिना लाभ के फल देते
मर खप कर भी खाद बन जाते
दूसरों के उपयोग में
खुद उपयोग हो जाते!
मैं निर्जीव हूँ पर
जब तक टूट फूट नहीं जाता
तुम्हारे प्रयोग की वस्तु बन
उपयोग होता रहता हूँ
नष्ट होकर भी कुछ ना कुछ दे जाता हूँ
मेरी प्लास्टिक व कम्पयूटर की
बनी वस्तुएँ मिट्टी में नष्ट नहीं हो पाती
और पर्यावरण को निरन्तर
नुकसान पहुँचाती रहती
बाकी निर्जीव वस्तुएं
स्वत: ही नष्ट हो जाती
सृष्टि की रचना ही कुछ ऐसी है
मैं निर्जीव हूँ मेरा भी सम्मान करो!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
१२/४/१८

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