Thursday 1 February 2018

'मेरा रोबोट"

मशीनी सभ्यता का नायाब़ तोहफ़ा
असंवेदनशील जीव न होकर
स्वंचालित परन्तु बनने के बाद
कभी भी अनियंत्रित
दिल से नहीं अपितु
दिमाग से चलती और रूकती हो!
काश् तुम भी मानव नहीं
कोई "रोबोट"होते
कम से कम साथ तुम्हारा रहता
जब चाहती पास लाकर
प्यार करना प्यार करती
जब चाहती नफ़रत करना तो
दूर कर तुमको सजा देती
कोई फर्क़ न तुमपर होता
न ही मेरे चेहरे पे सिकन!
जानती हूँ तुम मशीन हो
मेरे हाथों के खिलौना मात्र
मिट्टी का बनने सजीव नहीं
जो मुझसे जी भर जाने पर
तलाशे नई मिट्टी की देह!
मूर्तिकार बन मेरे देह तराशते
तो कभी चित्रकार बन उभारते
कभी कांसे में मुझे ढ़ाल देते तो
कभी कवि बन कविता बना देते
तो गायक बन गज़ल़ गा देते
कभी अपने मनोकूल मुझे अनुकूलित
जैसे मैं कोई तापमान होऊँ!
कभी मानव क्लोन तो
कभी रोबोट को तुमने बनाया
मानव के विकल्प में रूप में
आधुनिक युग के वैज्ञानिक बने
पर मैं "मेरा रोबोट" बनना चाहती हूँ
तुम्हारे अनुपस्थिति के विकल्प में!
जो इस जीवन में सदा साथ रहे
और मेरे मर जाने के बाद भी
एकनिष्ठ का एकनिष्ठ बना रहे
जैसे मैं तुम्हारे लिए रही
मशीन है वो मैंने उसे बनाया
मेरे आदेशों का गुलाम है
मेरा कहा तो मानेगा ही
समझ रहे न तुम मेरे इशारे!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
2/1/18

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