"श्रापित हूँ मैं"
श्रापित हूँ मैं! पूर्वजन्म के कर्मों को
इस जन्म में ,कर्मफल समझ भोग रही उस किये पाप से अन्जान हूँ मैं,फिर क्यों श्रापित हूँ मैं ! दुआ लगती है बड़ों की
तो, क्या श्राप भी लगते उनके!रामश्रापित रहे नारदमुणि के श्राप से, हर मानव जन्म स्त्री सुखवहीन रहे!अहिल्या श्रापित रही ऋषि के श्राप से राम चरण स्पर्श से मुक्ति पाई !विष्णु श्रापित हुऐ
सति तुलसी के श्राप से, क्षणभर भर में पत्थर बने! शनि श्रापित हुए अपनी कुमाता के श्राप से विकलंग क्षणभर के लिए बने! मैं भी श्रापित हूँ किसी के दिल को दु:खा कर,जीवन में प्रेमपक्ष शून्य रहा! ऐसी कोई चीज जो मेहनत कर ना मिले
व किस्मत के सितारे भी ना दें
तो समझ लेना चाहिय कि
श्रापित हो तुम किसी के श्राप से!कभी किसी को इतना मत तड़पाओं की उसकी आत्मा तक तड़प उठे
और उसके मुख से श्राप निकल पड़े! ये नकारात्म उर्जा है
जो जीवन को दुष्चकों में उलझाती है वैसे ही आर्शिवाद सकारात्मक उर्जा है जो जीवन की बाधाओं को दूर भगाती है, आकारण किसी का ना श्राप लगता ना ही आर्शिवाद
दोनों के लिए मन में सच्चे भाव होने चाहिऐ!फिर भी श्राप कभी भी किसी को नहीं देना चाहिए
क्योंकि ये कभी भी शुभफलदायी नहीं हो सकते! श्रापित हूँ मैं! कुमारी अर्चना मौलिक रचना जन्मस्थान-,पूर्णियाँ,बिहार २३/२/१८
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