Thursday 1 February 2018

"अश्क तो आँखे बहा चुकी"

अश्क़ तो आँखे बहा चुकी
साँसे भी तेरे लिए चीर हुई!
कराह की आती आवाजों से
नब्ज़ की पराध्वनियाँ शून्य है!
असमर्थ है सत्य कहने में
पीर कहाँ तक जा चुकी!
नि:शब्द हुए अल्फ़ाज मेरे
स्तब्ध हुआ मेरा पराब्ध!
कर्म हुआ निष्फल मेरा
तेरे प्रेम की एक क्रिया में!
क्षीण पड़ी सारे संवेदनाएं
जब मौन हुई मेरी काया!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२/२/१८

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