Tuesday 6 February 2018

"पापा ओ पापा"

कहाँ खो गए तुम
पापा ओ पापा
कहाँ छूप गए तुम!
क्या आप कोई खोई हुई वस्तु हो
पर मेरी रबड़,
पेंसिल तो खोकर
मिल जाती है घर में
फिर आप खोकर क्यों
नहीं मिल रहे हो
क्या आप बादल हो
जो अभी पास दिखते है
पलक झपकतें ही दूर!
क्या आप कोई जादूगर हो
पापा जादू दिखाकर मुझे
खुद कहीं गायब!
पापा ओ पापा ढूढ़ा तुम्हें चाँद में
ढूढ़ा तुम्हें तारों में
फिर भी तुम ना मिले
सुना है जाने के बाद सब
वही मिलते है फिर क्यों
मेरी नजरें तुम्हें देख नहीं पा रही
आकाश बहुत दूर है इसलिए
या मेरी नन्हीं आँखों की रोशनी
सूरज की तरह तेज नहीं
जो झट से कोणों कोणों में पहुँच जाए
क्या जब मैं बड़ी हो जाऊँगी तो
तुम्हें अवश्य ही
चाँद तारों में ढूढ़ लूँगी
सबसे चमकता सितारा तुम हो ना पापा
फिर मैं ढूढ़कर "अलादिन के चिराग"
जैसे छुपा दूँगी जब भी चिराग को
धीरे से रगड़ूँगी आप जिन्न जैसे
पकट हो जाएगे!
तभी पापा दूर प्रदेश की ड्यूटी से
वापस लौट कर दरवाजे पे
आवाज़ लगाते है
बिटू बेटा कहाँ हो तुम !
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
६/२/१८

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