Tuesday, 6 February 2018
"मोहे दे दे विदा मेरे बाबूल"
"मोहे दे दे विदा मेरे बाबूल" मोहे दे दे विदा मेरे बाबुल। नेह अब मत जता मेरे बाबुल। चढ़के घोड़ी पे आया है दुलहा। संग बारात लाया है दुलहा। शीश पर बाँध फूलों का सेहरा। रूप राजा का पाया है दुलहा। रीति अब तू निभा मेरे बाबुल। मोहे दे दे विदा मेरे बाबुल। रीति सदियों से ये चलती आई। एक दिन बेटी होती पराई। माँ न यौं आँसुओं को बहा तू। मुझको डोली बिठा मेरे भाई। अब न रो, मत रुला मेरे बाबुल। मोहे दे दे विदा मेरे बाबुल। छूटतीं आज सखियाँ सहेली। हो गयी आज बेटी अकेली। याद आयेंगे मुझको खिलौने। ख़ूब बचपन में मैं जिनसे खेली। अब सफर है नया मेरे बाबुल। मोहे दे दे विदा मेरे बाबुल। ना हटे तेरा आशीष सर से। दूर जाऊँ न पी की नज़र से। तेरे घर से उठे आज डोली। किंतु अर्थी उठे पी के घर से। आज कर ये दुआ मेरे बाबुल। मोहे दे दे विदा मेरे बाबुल। कुमारी अर्चना पूर्णिया,बिहार मौलिक रचना 17/12/18
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