दीपक हूँ मैं
अपनी ही
बाती की लौ से
जल रहा हूँ!
मैं तो तप ही रहा हूँ
इस तपिस में
पर मेरा
दिल भी जल रहा!
क्योंकि दुनियाँ को रोशनी
और मुझको तड़फाने वाली
बाती
खुद ही जलकर
धीमी धीमी
बुझ जाएगी !
फिर से अंधेरा होगा
मेरे अन्दर भी
मेरे बाहर भी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
3/4/18
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