Friday 9 February 2018

"क्या कहती है स्त्री पीठ"

उसकी चौड़ी
गैरी चिट्टी
आगे से कंसे नितंब
पीठ पर मैं कामपूर्ति लिखूँगा
और क्या लिखूँ मैं
चरित्रहीन
कुलटा
डायन
वैश्या
और क्या है वो
दैवी
माता
प्रिया
पत्नी
पुत्री
बहु
पोती
हा हा हा
वो देह है केवल
मुझे जिस रूप में मिलें!
हाँ संबंधों की परिपाटी में
मेरी सीमा है कुछ स्त्रियों पर!
पर मैं प्रतिबद्ध नहीं हूँ
जो अपनी खींची लक्ष्मण रेखा
ना तोड़ सकूँ
ना ही रावण हूँ
परस्त्री को शोभा बना केवल रखूँगा
उसके स्त्रीत्व की रक्षक बनूँ
मैं आधुनिक युग का
कलयुगी मानव हूँ
वस्तु को धन से
धन को वस्तु में
तोल मोल करता हूँ
भावनाओं का कोई मोल नहीं मेरे लिए
सब बराबर है
स्त्री और वस्तु तथाअस्तु!
हे पुरूष!
मुझे कामपूर्ति साधन समझ
कभी मेरी पीठ पर तुमने
रामायण
महाभारत
गीता
मनुवाद को लिख छोड़ दिया
क्या मेरी पीठ युद्धभूमि है
या जुता हुआ खेत है
जब जिसने चाहा
जब चाहा
जैसा चाहा
कोई भी बीज बो दिया
बाद खराब फसल होने पर
स्त्री को जमीन समझ कोसा
और मुझे अपनी पीठ दिखाई!
तुम अपनी पीठ मुझे दे दो
मैं कुछ लिखना चाहती हूँ
वासना का पूजारी
छलिया
कमीना
लालची
मतलबी ना कहूँगी तुम्हें कभी!
प्यारा
स्नेही
सच्चा
आर्दशवादी
नैतिकतावादी
कर्त्तव्यनिष्ठ
लिख तुम्हें महापुरूष बनाऊँगी
एक बार पुन: तुम फिर से सोचोगें
मेरे पीठ पर लिखें को मिटाने को!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
९/२/१८

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