Tuesday 6 February 2018

"मध्यमवर्ग"

" मध्यम कौन?
 जो बीच का हो ! 
या यूँ कहें दुल्हा दुल्हिन के बीच 
लोकनियाँ है ! 
 समस्या मध्यवर्ग की सोच में नहीं 
उसकी सदियों से वटवृक्ष के समान 
फैली साखाओं में है जो जड़ कर चुकी! 
 अंदर ही अंदर स्तंभ बनकर! 
 वैसे ही मध्यमवर्ग कभी 
जरूरतों से आगे बढ़कर 
नयी चुनौतिओं का सामना
 दंटकर नहीं कर पाता बल्कि 
उसकी सोच उसे "यथास्थिति का समर्थक" 
सदा बनाये रखती है 
 वो सदा मध्यमार्ग के 
रस्ते पर चलता है! 
इसलिए वो रीति-रिवाज,
 धर्म-परम्परा व जाँत-पाँत 
नौतिकता के मायाजाल से 
उसका मोहभंग हो नहीं पाता !
 सदा गधे के तरह इनको ढोता है 
 वह कहाँ है? सदा भूल जाता है 
अपने वजूद को तलाश नहीं पाता है छटपटाता,तड़पता,फड़फड़ाता रहता 
पर "विवश्ता की बेड़ियों" में 
 फिर से बंघ जाता इन्हें ढोने के लिए !
 हाय् मध्यमवर्ग उच्चवर्ग में पहुँचने के लिए 
सदा हाथ-पाँव मारा फिरता 
पर भूल जाता जितनी चादर हो उतना ही 
टांग पसारना चाहिए! 
जनसंख्या में अधिक होकर भी
उतना लाभ पाता उसपर भी
 मलाई कोई और मार ले जाता! 
मध्यवर्ग बीच का बीच में 
 सदा लटका रह जाता          
पेडुल्मनुमी! 
 कुमारी अर्चना
 पूर्णियाँ,बिहार
15/3/18

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