Friday 22 February 2019

"मैं शहर हूँ"

मैं शहर हूँ
मुझ रहने वाला मेरे सच से बेखबर है
वह मुझे धीरे धीरे जानता है
जब वह खुद को भूल जाता है!
मेरी जगमगाती रोशनी देखकर
अपने सपनों को सच करने
भागते सब मेरे पीछे पर
मैं खुद छोटा सा,नन्हा सा,पिद्दी सा हूँ
कहाँ से समा पाऊँगा सबको मैं शहर हूँ!
ढ़ेर सारी खुशियाँ तो देता हूँ पर बदले में
अकेलापन,घुटन देता हूँ
बहुत सारी सपनें तो देता हूँ
पर अपनों को अपनों से छीन लेता हूँ!
चौंधियाँ जाते सब मेरी चमक देखकर
अपनी खुली आँखें भी बंद कर लेते!
मुझ से मुकाम पाना सब चाहते
पर मुकम्ल मैं किसी किसी की
जिंदग़ीयों को करता हूँ
लौट जाते खाली हाथ
इस शहर से वो
जिनकी जिंदग़ीयों को
मैं नहीं सँवारता हूँ
मैं शहर हूँ!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'

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