Friday 8 February 2019

"तुम्हारा लिहाफ़"

तुम्हारे लिहाफ़ सिमट गया
मानो मेरी जिंदगी बनकर
जब भी खाली खाली मुझे लगता है
मेरे अंदर तुम्हारे लिहाफ़ से
खुदको समेट लेते हूँ!
तुम्हारे उसी गर्मी को
फिर से पाकर मैं भर जाती हूँ
पूरी की पूरी स्फूर्ति से!
खालीपन जब भी मुझे काटने दौड़ता
फिर से पुराने उन्हीं दिनों में लौट जाती हूँ
रात को तुम्हार लिहाफ़
मेरे पास ही रह गया था
और तुम छूट गए थे
जैसे देर पहुँचने पर
गाड़ी सिटी भरती हुई
छुक छुक छुक करती
अपने गंतव्य स्थान की
ओर चलने लगती है
सवारी फिरसे अपने घर!
पर मैं तो वही हूँ
तुम आगे निकल गए
मेरी जीवन यात्रा आज भी
अंधूरी जैसे की मैं!
और तुम्हारी पूरी हो रही
एक पूरी भी हो जाएगी
तुम्हार लिहाफ़ मेरी जिन्दगी के साथ
रहते रहते एक दिन
मेरी रूह से लिपट जाएगी
हो सके तो अपना भूला लिहाफ़ लेने के
बहाने मेरे कब्र पर फूल देने
तुम आ भी जाना क्योंकि
मुझे तुम्हारे उन्हीं फूलों का इंतजार है
जो तुमने कभी नहीं दिए!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना

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