ये कैसी आगे जाने की दौड़ है
चढ़ जाने की हौड़ है
ये कैसी उन्मुक्त दौड़ है
कोई ऊपर चढ़ा जा रहा
कोई नीचे रौंदा जा रहा
कोई आगे निकल जा रहा
कोई हासिये पर जा रहा!
जान तक सस्ती हो चुकी
दुर्धटना में ही लाखों की जाती
हेल्मेट पहने की सलाह सदा ही सवार को
फॉलो की दी जाती पर
बड़े गाड़ी चालक लापरवाही में
सवार व सवारी की जान ले रहे
कारण शराब का नशा बता रहे
तो कभी गाड़ी की यांत्रिक खराबी का!
पर जान निर्दोषों की जा रही
कभी जानवर तो
कभी इन्सान कलयुग में
सभी हो गए हैं समान
वक्त ना रहा किसी को रूकने का
धौर्य नहीं रहा किसी का आपे पर
बस आगे ही आगे जाना है
सब कुछ जल्दी जल्दी पाना है!
किसी माँ का बेटा- बेटी तो
किसी की मांग का सिंदूर तो
किसी के सिर का साया
तो किसी के सूत का रक्षक ना रहा
पर किसी को क्या फर्क पड़ता है
प्रशासन की रहती लापरवाही
व्यवस्था में जल्द न होता कोई सुधार
झूठे वादों से चलता राजनीति व्यापार
सड़को पे गढ़े वैसे के वैसे
और पटरियों का रहता खस्ता हाल
शहर सौदर्यकरण के नाम पर
घोटालों का तौफ़ा जनता को मिलता!
कोई तो रोको इस बढ़ती दुर्घटना को
कोई तो टोको नियम पर चलने को
यातायात के नियमों में कठोरता लाओ
इनपर कड़ा से कड़ा शुल्क लगाओ
हत्यारे है जान के इनको ना बख्शो!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
Wednesday 27 February 2019
"ये कैसी आगे जाने की दौड़ है"
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