Monday 25 February 2019

"विस्मृत सी मैं हो रही"

विस्मृत सी मैं हो रही
जाने क्यों विस्मृत सी मैं हो रही
ओझिल हो रहा
मेरा अतीत बंद पलकों में
तो संभाल रखा था
अभी तो मैं वृद्ध भी नहीं हूई
जो मेरी यादाशत कमजोर हो!
फिर क्यों यादों का कोष खाली हो रहा
वो बीती बातें
वो मुलाकातें
वो बीते दिन
वो रातें
वो सब कुछ जो कल तक
मेरे पास था जाने कहाँ खो रहा!
भविष्य तो गर्त में छुप कलवटें ले रहा
पर मेरा वर्तमान क्यों हाथों से जा रहा
मैंने बंद मुठ्ठी में कर रखी है फिर भी!
जाने क्यों विस्मृत सी हो रही
ओझिल हो रहा मेरा अतित
ऐसा लगता मानो बरसों हो गए हो
मेरे तुम से मिले हुए
अभी रात तो मिले थे ख्वाबों में!
डाॅक्टर ने कहा मेरे मन का टूटन है
अब तो ऐसा होगा ही
जल्द ही मैं तुमको
फिर खुद को भूल जाऊँगी
फिर सब कुछ शून्य में चली जाऊँगी!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'

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