सींच रहा वो पौधों को देकर
अपना ख़ून-पसीना
नित सवेरे नहा धुलाकर
आँगन जैसा अपनी बगीया को
कर देता वो चकमग!
फूलों की खुशबू जब फैलती
चाँदनी रातों में गमगम करता सारा उपवन
चाँद मुनवार करता चाँदनी को
प्यार की प्यास बुझाने को!
टूटे पत्तों को देखकर होता
उसका मन होता उदास
बार बार उन्हें वह वही जोड़ता
जिन टहनियों से वो टूटे थे!
पौधों की चिलखती धूप में देख
वो मानो खुद झुलस जाता
कहीं पेड़ सुख न जाएं
कोमल कोपलें जल न जाएं
तो कभी अवसाद से घिर जाता
कोई तोड़ मड़ोड़ कर फेंक दें
कोई उखाड़ कर उसका आँगन
बिन बच्चों जैसा सुना न कर दें
बगीया कि सेवा करते करते
वो खुद बन जाता पौधा!
कीड़ो से पौधो को बचाने हेतु
सदा जैविक खादों का करता प्रयोग
रसायनिक दवाओं और छिड़काव से
पौधों को नष्ट होने से वो बचाता
किसी कारण से ग़र मर जाते हैं
वो अपनों जैसा शोक मनाता हैं
दिल के आँसू आँखों तक उतार लाता
मन मसोर कर कभी वो चुप रह जाता
माली के फूल व पौधे सबका मन मोहते
वो कभी किसी के दिल में न उतर पाता!
काश् मैं भी माली बन जाऊँ
सदा करती रहूँ मेरे बगीया की सेवा
जैसे माता -पिता करते अपने
संतानों की एक समान सेवा!
कुमारी अर्चना 'बिटूटू'
मौलिक रचना
Thursday, 7 February 2019
"माली सा कोई नहीं"
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