Thursday 7 February 2019

"काँटों में मैं हूँ"

काँटों में हूँ
तो दिल भी काँटों में
काँटे जब मेरे बदन को चुभते है
तो दर्द मेरे दिल को होता
क्योंकि तुम दिल में हो!
मैं तुमको दर्द में नहीं देख सकती
तुम मुझको अपने पथ का
माली बना लेना चुन लूँगी
तुम्हारे रास्ते के काँटों को
जहाँ से तुम गुजरों!
मैं फूल बनना चाहती हूँ
ताकि कोई काँटा न चुभे
तुम्हारे कदमों को!
तुमको अपना बना सके तो क्या
तेरे चरणों की धूल भी बन जाऊँ तो
सार्थक होगा मेरा यह जीवन
एक जोगन की पूजा -अर्चना!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

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