Sunday, 24 February 2019

"क्या कोई मायने है दिवसों को मनाने के"

साल के तीन सौ पैंसठ दिन
पलक झपकते मानो बीत जाते
ऊपर से हम राष्ट्रीय,अंर्तराष्ट्रीय और
त्योहारों मनाने में बीत जाते है
उम्र के साथ साथ खुशियाों के रंग
जरूरतों के आगे फीका पड़ जाता है
फिर भी अपने धर्मिक त्योहारों को
कर्ज लेकर भी हम मना लेते है!
राष्ट्रीय दिवस एकता के लिए
और ये दिवस साठ से ज्यादा
और अर्तराष्ट्रीय दिवस
विश्व शांति के लिए ये भी
ढेड़ सौ से लगभग ही है
दिवस हर वर्ष क्यों मनाएं जाते है?
आखिर इनका क्या उदेश्य है?
क्या दिवसों का फायदा भी होता है?
केवल कई दिनों की बर्बादी है
व्यक्ति सरकारी तन्ख़ाह तो उठाता
पर कमचोर बनता चला जाता
पश्चिमी देशों में दिवस मनाएं जाते है
खास अवसरों पर ही अवकाश मिलता
पश्चिमी देशों में एक धर्म,एक भाषा होने से
धार्मिक छुट्टियाँ कम होती है
भारत बहुलभाषी,विभिन्न धर्मावलंबी
लोगों के राज्यों का एक देश है!
दिवस मनाकर हम शहीदों की
कुर्बानी सदा याद करते है
नेता समाधि पर फूल चढ़ाते है
और लंबा चौड़ा भाषण देते है
जनता एक कान से सुनती है
दूसरे से कान से निकालती है!
जरूरत है उनके उपदेश व विचारों के
पालन करने की समय की उपयोगिता को
समझते हुए ज्यादा कार्यशील बनने की
देश संवृद्धि और विकास करने की!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'

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