कई आगें सुलग रही
कौन सी बुझाऊं
कई दर्द छुपे सीने में
कौन कौन सा दिखाऊं
गमों में मन उलझा
कौन सा गम भूलाऊं
तुमको भूलना चाहती हूँ
पर खुद को भूल गई
जख्म इतने गहरे है
मरहम भी बेकार हुआ
मैं भंवर में फंस गई हूँ
और मुझे में मन!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
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