रोज रोज रौंदी जाती हूँ
तुम्हारे कदमों के नीचे
गाड़ियों की फट फट से कभी सोचते हो
जब चलते मुझ पर नहीं ना,
भला क्यों सोचोगे तुम
जब तुम सजीव के बारे में नहीं सोचते
तो मुझ निर्जीव के बारे में क्यों सोचोंगे
शायद वक्त नहीं तुम्हारे पास
दुर्धटनाएँ आए दिन इतनी क्यों होती
पहले जमाने में नहीं हुआ करती थी
तब इतनी सुविधाएँ भी नहीं होती थी
आज तो तुम सुविधा संपन्न हो
आधुनिक तकनीक और तकनीशियन
चारों पहर उपलब्ध है!
सड़क बनाने में घटिया सामाग्रियों का
प्रयोग होता है और सारा दोष मेरे सिर आता
शराब पी वाहन तुम चलाते
तुम्हारी लापरवाहियों से आए दिन
दुर्धटना होती लोग मुझे कोसते,
जीवन है तुम्हारा अनमोल
इसलिए मेरी वक्त पर मरम्मत करते रहो
सड़क पर मत थूको मुझे बुरा लगता है
जैसे तुमको लगता जब कोई
तुम्हारे चेहरे पर थूकता
मुझे सुन्दर बनाए रखो
क्योंकि तुमको मुझ पर चलना है!
कुमारी अर्चना'बिट्यटू'
Thursday, 21 February 2019
"सड़क हूँ मैं"
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