काश् कोई मेरे लिए भी
हरी हरी चुड़ियाँ लाता
सावन की वो मस्तानी चुड़ियाँ
मुझे हरी करने को!
खुद अपने हाथों से हौले हौले
मेरी कलाईयों पर पहनाता
वो मुझमें खो जाता मैं उस में!
मैं एक बार नजरें उठा देखती
एक बार अपनी चुड़ियों को
वो सोचने को मजबूर हो जाता
मैं किसी चाहती हूँ
उसको या हरी चुड़ियों को!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना
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