Friday 1 March 2019

मनहरण धनाक्षरी

बसंत की हे बयार
संग बहु मझंधार
मन का पिहू भरे रे,
उड़ा गया रे चैन
धूप जोवन खिलाये,
पुष्प वन महकाये
पपीहा मंद मुस्काये
मन भावन रैन!
रश्मियाँ दुलार में,
यामिनी इजहार में
प्रेयसी इंतजार में,
हे मधुमास नैन
फागुन में रंग पड़े,
मन में उमंग भरे
राधा तरंग लिए,
श्याम रहे मौन!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'

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