मैं कवयित्री नहीं हूँ
क्योंकि अभी शब्द मुझे खेल रहे
जिस दिन मैं शब्दों से खेलूँगी
मैं उस दिन कवयित्री बन जाऊंगी!
मैं कवयित्री नहीं हूँ क्योंकि
अभी मैंने कलम पकड़ना सीखा है
जिस दिन मैं क़लम चलाना सीख जाउँगी
मैं उस दिन कवयित्री बन जाऊंगी!
मैं कवयित्री नहीं हूँ क्योंकि
अभी भी कल्पनाओं में हूँ
जिस दिन कल्पनायें मुझमें होगी
मैं उस दिन कवयित्री बन जाऊंगी!
मैं कवयित्री नहीं हूँ
मैं अभी शब्दों की गुलाम हूँ
जिस दिन शब्द मेरे गुलाम होंगे
उस दिन कवयित्री बन जाऊंगी!
मैं कवयित्री नहीं हूँ
क्योंकि कविता मेरे दिल की भावनाएं है
जिस दिन ज़िन्दगी के अनुभव बन जाएगी
मैं कवयित्री बन जाऊंगी!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना
Friday, 1 March 2019
"मैं कवयित्री नहीं हूँ"
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