बादलों को शिकायत है
हमें आपकी याद में कैसे उड़ते है
फूलों को शिकायत है
हम आपसे क्यों महकते हैं
हवा को शिकायत है
हम आपको नामसे कैसे साँसे लेते है
ध्वनी को शिकायत है
हम आपका संदेश पहले कैसे सुनते है
तारों को शिकायत है
हम आपको सितारा क्यों कहते हैं
रात को शिकायत है
हम बिस्तार पर क्यों जागते हैं
दिन की शिकायत है
हम आपके ख्याल में क्यों रहते हैं
चाँदनी को शिकायत है
हम आपको चाँद क्यों कहते हैं
सूरज की शिकायत है
हम आपसे कैसे रोशनी हैं
अपनों की शिकायत है
हम गैरों पे क्यों मेहरबाँ हैं
परिचितों की शिकायत है
हम अपरिचित के क्यों करीब हैं
शीशे को शिकायत है
हम आईनें में आपको कैसे देखते हैं
पत्थरों को शिकायत है
हम आपको क्यों पूजते हैं
पहाड़ों को शिकायत है
हम आज भी आपके लिए कैसे ठहरे हैं
सागर की शिकायत है
हम आपके विश्वास में कैसे तैरते है
नदी को शिकायत है
हम आपके सहारे कैसे बहते है
मुझे खुद से शिकायत है
हम खुद से ज्यादा आपको क्यों चहतें हैं!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
Tuesday, 5 March 2019
"शिकायत है"
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