ज़िन्दगी को जिया ज़िन्दगी की तरह!
तीरगी को लिया रोशनी की तरह!!
कैसे इंसानियत की हो उम्मीद अब,
आदमी अब कहाँ आदमी की तरह!
दर्द भोगा मगर सब निभाती रही
सब उसूलों को मैं बन्दगी की तरह!!
आलमे इश्क़ में ये हुआ उम्र भर,
मेरी चाहत रही तिश्नगी की तरह!
"अर्चना"ये तमन्ना है बजती रहूँ
तेरे अधरों पे मैं बासुरी की तरह!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना कटिहार,बिहार
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