Monday 4 March 2019

"मैं नारी हूँ"

मैं प्रकृति जैसी हूँ
प्रकृति क्षमता धारण करती है
मैं गर्भ को!
मैं पृथ्वी जैसी हूँ
पृथ्वी भार सहन करती है
मैं सहनशीलता को!
मैं जल जैसी हूँ
जल प्यासे की प्यास बुझाती है
मैं पुरूष की!
मैं सूर्य जैसी हूँ
सूर्य रोशनी की किरण बिखेरती है
मैं ममता की!
मैं चाँद जैसी हूँ चाँद चाँदनी फैलाता है
मैं करूणा व प्रेम को!
मैं नारी हूँ
मैं सृष्टिकर्ता का सृजन हूँ
सृजनशीलता ही मेरे जीवन का
एक मात्र ध्येय है!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना

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