मैं गीत रच,गाती रहा
वो चिट्ठियां पाता रहा!
विश्वास का दीया सदा
ले रोशनी,आता रहा!
वो प्रेम से ही प्रेम कर
नेहल सादा भाता रहा!
सुलझी हुई सी डोरियाँ
बेकार उलझाता रहा!
दोस्त दुश्मन कुछ नहीं
ये समय बतलाता रहा!
आनंद लाओ "अर्चना"
ये सबक सिखलाता रहा!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
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