तितली जैसी हूँ मैं
उर चली गगन छूने
अपने चमकते पर्रो को संभालते हुए
टिड्डा जैसे तो तुम
भँवरा का रूप बदल कर
तितली से झूठा प्यार जताकर
उसका रस पाना चाहते हो!
अपना रेन बसेरा कहीं ओर बसाकर
तितली का घोंसला उजाड़ना चाहते हो
मैं तितली उन्मुक्त गगन में
पक्षी जैसी अपने पर्र फैलाये उर चली
एक छोर से दूसरे छोर तक
जहाँ खुला हवा होगी
जहाँ सच्चा प्यार होगा
मैं वहाँ अपने साथी संग
नया घोंसला बनाऊँगी!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
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