Saturday 9 March 2019

"एक मात्र प्यार"

जाने कितने मौसम आये
और कितने सावन की फूहारे बन आये
बाद मुझे पतझड़ बनाकर चले गये!
जो रह गया चट्टान सा अटल
बरगद सा अपने शाखाये फैलाये
मुझे अपनी आगोश में माघ सा समेटे रहा
मेरे मन मंदिर को आज भी
अपना फागूनी रंग दे रहा!
अपनी भिन्नी भिन्नी खुशबू से
मुझे भादों बना रहा!
जिसका नाम ऋतुओं जैसा मुझे
मँहजुबानी याद रहेगा
ज़िन्दगी की अंतिम साँसों तक
वही 'एकमात्र प्यार' है
बाकी सब आकर्षण मात्र थे!
कुमारी अर्चना'बिट्टू' मौलिक रचना

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