Tuesday 26 March 2019

"तुम जो नहीं मेरी ज़िन्दगी में"

तुम जो नहीं ज़िन्दगी में
साँसों की डोर है कि
टूटने का नाम नहीं लेती
तेरे दीदार को आँखे तरस रही
जैसे बारिश के लिए
प्यासी धरती हो!
मेरा मन फिर से जीना चाहता है
ये आसमान में तितलियों जैसा
उड़ना चाहता है
पर संग जब तुम हो!
मेरा दिल भी प्यार करना चाहता है
फूलों जैसा महकना चाहता है
पर क्या करूँ तुम जो नहीं
मेरी ज़िन्दगी में!
तुम बिन ये ज़िन्दगी कैसी
बस साँसों चलती है
सारी उमंगे,
सारी तरंगे,
सारी तमन्नायें
बुझ सी गई हैं जैसे कि कोई राख हो
जैसे कि कोई राख हो!
कुमारी अर्चना'बिट्टू' मौलिक रचना

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