Tuesday 12 March 2019

"मर रही हूँ मैं,पर जिंदा रहेगी मेरी कला"

रोज एक एक दिन कर
यूँ ही वक्त के साथ मर रही हूँ
मैं मर रही मेरी कला!
ये ख़ून-पसीना नहीं
जो यूँ ही बह जाये
ये मेरी भावनाएँ है
जो दिल से निकलती है
मेरे आँखो के अश्रु नहीं
जिन्हें यूँ ही बह जाने दूँ!
ये मेरा सृजन है
इसे अपनी कल्पनाओं से
भोगे हुए जीवन से पाया है
मैं अपनी कला को
जाया न जाने दूँगी!
यूँ ही कटी पतंग जैसी
कहीं खो जाने न दूँगी
अपने वजूद को!
मैं इसे कविता का रूप दूँगी
समाज के लिए सार्थक करूँगी!
मर रही हूँ मैं
पर जिंदा रहेगी मेरी कला!
कुमारी अर्चना'बिट्टू' मौलिक रचना

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