उनके आमद की घड़ी है
दिल में मेरे खलबली है!
लब पे मेरे तश्नगी है
सामने प्यासी नदी है!
खुदगरज़ है सब यहाँ के
यह जहाँ ही मतलबी है!
इश्क़ की मारी हुई हूँ
काम मेरा आशिक़ी है!
आज की शब आ ही जा तू
कर्ब है तश्नालबी है!
जा मिले है अब के ऐसे
जैसे कोई अजनबी है!
आ गले से लग जा मेरे
ये गुजारिश आखिरी है!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
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