संगम हो तो कैसे?
मेरे कुछ कहने
और तुम्हारे कुछ सुनने को
कुछ ना बचा है
धीमी धीमी आग सुलगती गई
हमारे तुम्हारे दरमिया
सब कुछ जल गया
तुमने इतनी दूरियाँ बनाई
गहरी खाई सी बन गई
हम दोनो का प्यार मिलकर भी
इस रिश्ते को बचा नहीं सकता
जख़्म तो भर जाता है
अविश्वास की वो खाई
मरतेदम तलक नहीं मिटती
और हमारा मिलन भी!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
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